*/ भारतीय संविधान अति महत्वपूर्ण प्रश्न|| Indian Constitution » EasyGKNotes class="post-template-default single single-post postid-879 single-format-standard custom-background wp-embed-responsive everest-forms-no-js right-sidebar box-layout better-responsive-menu">

भारतीय संविधान अति महत्वपूर्ण प्रश्न|| Indian Constitution

भारतीय संविधान अति महत्वपूर्ण प्रश्न
Indian Constitution

Q.1. ग्राम पंचायत का निर्वाचन कराना किस पर निर्भर करता है?
Ans. – राज्य सरकार पर

Q.2. राज्य में ‘राष्ट्रपति शासन’ से तात्पर्य राज्य में किसके शासन से है?

Ans. – राज्य के राज्यपाल के
Q.3. राष्ट्रपति राज्यों में किस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति शासन आरोपित करता है?
Ans. – अनुच्छेद 356

Q.4. राज्य सभा का पदेन अध्यक्ष कौन होता है?
Ans. – भारत का उपराष्ट्रपति

Q.5. भारतीय संविधान किसको हटाने की व्यवस्था प्रदान नहीं करता है?
Ans. – राज्यपाल

Q.6. कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व भारत के राष्ट्रपति को उनके पद से कौन हटा सकता है?
Ans. – संसद द्वारा महाभियोग लगाकर

Q.7. भारत के प्रधानमंत्री को कौन नियुक्त करता है?
Ans. – राष्ट्रपति

Q.8. राष्ट्रपति के चुनाव में कौन भाग लेता है?
Ans. – लोकसभा, राज्यसभा तथा विधानसभा के सदस्य

Q.9. लोकसभा व राज्यसभा की संयुक्त बैठक कब होती है?
Ans. – संसद सत्र शुरू होने पर

Q.10. कौन-सा अधिकार केवल राज्यसभा को प्राप्त है?
Ans. – नवीन अखिल भारतीय सेवाओं को शुरू करने का अनुमोदन करना

[08:13, 27/02/2022] kwadhwa131: Q.11. राष्ट्रपति की मुत्यु होने या इस्तीफा देने पर राष्ट्रपति के कार्यालय का कार्यभार का पालन उपराष्ट्रपति कब तक करेंगे?
Ans. – अधिकतम छ: महीने की अवधि तक

Q.12. संविधान सभा ने भारत के संविधान को कब स्वीकृत किया था?
Ans. – 26 नवम्बर, 1949

Q.13. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में क्या लिखा है?
Ans. – हम भारत के लोग अपनी संविधान सभा में इस संविधान को अपनाते हैं, अधिनियमित करते हैं और इसे स्वयं को प्रदान करते हैं

Q.14. बिक्री कर कौन लगाता है?
Ans. – राज्य सरकार

Q.15. भारत के सशस्त्र सेनाओं का सुप्रीम कमाण्डर कौन होता है?
Ans. – राष्ट्रपति

Q.16. केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् किसके लिए उत्तरदायी होती है?
Ans. – लोकसभा

Q.17. संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता कौन करता है?
Ans. – लोकसभा अध्यक्ष

Q.18. राज्यसभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु सीमा कितनी है?
Ans. – 30 वर्ष

Q.19. किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में किसको मान्यता दी जाती है?
Ans. – यदि उसे चार या अधिक राज्यों में राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी गई हो

Q.20. संविधान के किस अनुच्छेद में संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार प्रदान किया गया है?
Ans. – अनुच्छेद 368

: Q.21. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की शक्ति प्रदान करता है?
Ans. – 85

Q.22. भारत का संविधान कितने वर्ष को लागू हुआ था?
Ans. – 26 जनवरी, 1950

Q.23. भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्वों के समावेशन का क्या उद्देश्य है?
Ans. – सामाजिक और आर्थिक लोकतन्त्र

Q.24. रौलेट अधिनियम किस वर्ष में पारित किया गया?
Ans. – 1919 में

Q.25. किस अधिनियम द्वारा भारत में साम्प्रदायिक निर्वाचक मण्डल लागू किया गया?
Ans. – 1909 ई. में

Q.26. संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य अपना इस्तीफा किसे सौंपते हैं?
Ans. – राष्ट्रपति

Q.27. गोवा राज्य का निर्माण किस संविधान संशोधन के द्वारा हुआ था?
Ans. – 56वाँ

Q.28. आर्थिक प्रतिवर्ष सर्वे किसके द्वारा प्रकाशित किया जाता है?
Ans. – वित्त मन्त्रालय

Q.29. वह राज्य जो लोकसभा में निर्वाचित सदस्यों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या भेजता है, वह कौन सा है?
Ans. – महाराष्ट्र

Q.30. वह निर्वाचक मण्डल जो उपराष्ट्रपति का चुनाव करता है, वह कौन है?
Ans. – लोकसभा व राज्यसभा

: Q.31. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद में लिखा है कि ”14 वर्ष से कम आयु का बालक किसी भी फैक्टरी या खान या अन्य कोई जोखिम पूर्ण रोजगार में कार्य नहीं करेगा”?
Ans. – अनुच्छेद 24

Q.32. संविधान की चौथी अनुसूची में किसका वर्णन है?
Ans. – राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्यसभा में प्रतिनिधत्व

Q.33. संविधान के अनुच्छेद 14 में कानून की समानता का अधिकार किस देश से लिया गया है?
Ans. – यू.एस.ए

Q.34. संविधान के अनुच्छेद 330 में किसका वर्णन है?
Ans. – लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए स्थान

Q.35. कौन-सा बिल संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पास होना अनिवार्य है?
Ans. – संविधान संशोधन सम्बन्धी बिल

Q.36. संविधान की आठवीं अनुसूची में कितनी भाषाएँ हैं?
Ans. – 22

Q.37. मूल कर्त्तव्यों का वर्णन संविधान के किस अनुच्छेद में है?
Ans. – अनुच्छेद-51 A

Q.38. संविधान के 42वें संशोधन में से क्या जोड़ा गया है?
Ans. – धर्मनिरपेक्षता

Q.39. संविधान के निर्माण में कौन-सा दल शामिल नहीं था?
Ans. – हिन्दू महासभा

Q.40. कौन-सा कार्य राज्यसभा के सदस्य ही कर सकते हैं?
Ans. – राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करना

Q.41. राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
Ans. – 6

Q.42. उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए संकल्प किसके द्वारा पेश किया जाता है?
Ans. – राज्यसभा

Q.43. पंचायती राज से सम्बन्धित संविधान के 73वें संशोधन विधेयक पर अपनी सम्मति किस समिति ने प्रकट की?
Ans. – संयुक्त संसदीय समिति

Q.44. भारतीय संविधान की मुख्य प्रस्तावना क्या है?
Ans. – विचार, अभिव्यक्ति विश्वास, आस्था और उपासाना

Q.45. भारतीय संविधान में ‘नीति-निदेशक तत्व’ को कहाँ से लिया गया है?
Ans. – आयरलैण्ड के संविधान से

Q.46. संविधान के किस अनुच्छेद में संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार प्रदान किया गया है?
Ans. – अनुच्छेद 368

Q.47. संविधान में संशोधन किससे नहीं किए जा सकते हैं?
Ans. – जनमत संग्रह से

Q.48. राज्यसभा को स्थायी सदन क्यों कहा जाता है?
Ans. – क्योंकि इसे कभी भी भंग नहीं किया जा सकता

Q.49. जुलाई, 1946 में बनी संविधान सभा (कांस्टीट्यूएण्ट असेम्बली) के सदस्यों में कौन नहीं था?
Ans. – महात्मा गांधी

Q.50. सबसे लम्बे लिखित संविधान वाला कौन-सा देश है?
Ans. – भारत

📖 भारतीय संविधान से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उतर

1. संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई थी-9 दिसंबर1946

2. आंध्र प्रदेश राज्य का गठन किस वर्ष किया गया-1953

3. मतदाता दिवस कब मनाया जाता है-25 जनवरी
संविधान सभा की प्रथम बैठक के अध्यक्ष कौन थे- सच्चिदानंद सिन्हा( अस्थाई अध्यक्ष)

3. भारत सरकार का लेखांकन का कार्य कौन करता है- महालेखाकार

4. कारगिल दिवस का गठन किस वर्ष हुआ-26 जुलाई

5. भारत सरकार का प्रथम विधिक सलाहकार कौन होता है -महान्यायवादी

6. उद्देशिका प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया- पंडित जवाहरलाल नेहरू

7. प्रधानमंत्री के कर्तव्यों का उल्लेख किस अनुच्छेद में है- अनुच्छेद 78

8. भारत में संविधान सभा के निर्माण का आधार क्या था- कैबिनेट मिशन योजना 1946

9. प्रस्तावना में भारत शब्द कितनी बार उल्लेख हुआ
है- दो बार

10. प्रारूप समिति का गठन कब किया गया-29 अगस्त1947

11. संविधान में भारत को क्या कहा गया है- राज्यों का संघ

12. भारत के संविधान को लागू कब किया गया- 26 जनवरी 1950

13. संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में किस संशोधन द्वारा समाप्त किया गया- 44 वें संविधान संशोधन द्वारा

14. मुस्लिम हेतु प्रथक निर्वाचन प्रणाली लागू की गई- मार्ले मिंटो सुधार द्वारा

15. 10वीं अनुसूची का संबंध किससे है- दल-बदल विधेयक

16. उद्देश्य प्रस्ताव कब प्रस्तुत किया गया-13 दिसंबर1946

17. नगर पालिकाओं को संवैधानिक मान्यता किस संशोधन द्वारा प्रदान की गई है- 74 संविधान संशोधन

18. झंडा समिति के अध्यक्ष कौन थे- जे बी कृपलानी

19. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है- अनुच्छेद 25

20. पंचायती राज दिवस कब मनाया जाता है-24 अप्रैल

21. भारत के संविधान को अंगीकृत करने की तिथि क्या है-26 नवंबर1949

22. देश के एकमात्र निर्विरोध राष्ट्रपति कौन चुने गए-नीलम संजीव रेड्डी

23. प्रारूप समिति को कब पारित किया गया-23 फरवरी1948

24. पॉकेट वीटो( जेबी वीटो) का इस्तेमाल किस राष्ट्रपति ने किया- ज्ञान जैल सिंह

25. उद्देश्य प्रस्ताव कब पारित किया गया-22 जनवरी1947

भारतीय संविधान  

भारत के प्रधानमंत्री

संविधान की अनुच्छेद 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगा जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा, राष्‍ट्रपति इस मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्‍पादन करेगा। इस प्रकार वास्‍तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित होती है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति

संविधान में प्रधानमंत्री का कार्यकाल तय नहीं है। प्रधानमंत्री के संवैधानिक प्रावधानों का वर्णन इस प्रकार हैं:

·         केंद्र सरकार के पास एक मंत्री परिषद होगी जिसके मुखिया प्रधानमंत्री होंगे।

·         प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी

·         अन्य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।

·         राष्ट्रपति के मर्जी से मंत्री अपने पद पर बने रहेंगे।

·         कोई एक मंत्री जो 6 माह तक किसी लगातार संसद का सदस्य नहीं है तो वह मंत्री पद पर बने रहने के लिए अयोग्य होगा।

शक्तियां और कार्य

भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में प्रधानमंत्री के कई महत्वपूर्ण कार्य होते हैं और प्रधानमंत्री अपने लाभ के लिए व्यापक शक्तियों का उपयोग करते हैं। वह देश का मुख्य कार्यकारी या सर्वेसर्वा होता है और केंद्र सरकार के मुखिया के रूप में कार्य करता है।

1) सरकार का मुखिया – राष्ट्रपति देश के मुखिया होते है, जबकि प्रधानमंत्री सरकार के मुखिया होते हैं। सभी निर्णय मंत्री परिषद और प्रधानमंत्री की सलाह व सहायता के बाद राष्ट्रपति के नाम पर लिये जाते हैं। यहां तक ​​कि वह (राष्ट्रपति) प्रधानमंत्री की सिफारिश के अनुसार ही अन्य मंत्रियों की नियुक्त करते हैं।

2) कैबिनेट अथवा मंत्रिमंडल का नेता – अपनी नियुक्तियों के बारे में वही राष्ट्रपति को सिफारिश करता है कि कौन क्या है, वह मंत्रियों के बीच विभिन्न विभागों का आवंटन और फेरबदल करता है। वह मंत्री परिषद की बैठक की अध्यक्षता करता है और उनके निर्णय को प्रभावित करता है। प्रधानमंत्री मंत्री मंडल किसी भी सदस्य को इस्तीफा देने के लिए कह सकता है या राष्ट्रपति को किसी भी मंत्री को हटाने की सिफारिश कर सकता है। यदि प्रधानमंत्री की मृत्यु या इस्तीफा हो जाता है तो पूरा मंत्री मंडल भंग हो जाता है।

3) राष्ट्रपति और मंत्री मंडल के बीच संबंध अथवा कड़ी – संविधान के अनुच्छेद 78 में प्रधानमंत्री के कर्तव्य निर्दिष्ट हैं और उनके निर्वहन के लिए वह राष्ट्रपति और कैबिनेट के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। निम्नलिखित ऐसे मामले हैं जहां वह ऐसे कार्य करता है:

·         केंद्रीय मामलों के प्रशासन और कानून के लिए प्रस्तावों से संबंधित मंत्री परिषद के सभी निर्णयों पर संवाद करते समय,

·         जब मंत्री परिषद द्वारा किसी भी निर्णय पर विचार करने के लिए संविधान की किसी भी धारा या परिषद की राय नहीं ली जाती है तो तब राष्ट्रपति इस तरह के मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रधानमंत्री से प्रश्न कर सकते हैं।

·         जब राष्ट्रपति संघ के मामलों या किसी ऐसी बातों के प्रशासन के बारे में कोई भी जानकारी मांगते हैं।

4) संसद का नेता – एक नेता के रूप में वह वह सत्र के लिए अपनी बैठकों और कार्यक्रमों की तिथियों का निर्धारण करता है। वह यह फैसला भी करता है कि कब सदन का सत्रावसान किया जाय या उसे भंग किया जाए। एक मुख्य प्रवक्ता के रूप में वह सरकार की प्रमुख नीतियों की घोषणा करता है और तत्पश्चात् सवालों के जवाब देता है।

5) विदेशी संबंधों में मुख्य प्रवक्ता – अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में वह राष्ट्र का प्रवक्ता होता है।

6) पार्टी का नेता – वह अपनी पार्टी के सदस्यों का नेता होता है  ।

7) विभिन्न आयोगों का अध्यक्ष- प्रधानमंत्री होने के नाते वह वह कुछ आयोगों का वास्तविक अध्यक्ष होता है जैसे- योजना आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद, अंतर-राज्यीय परिषद, राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद।

गठबंधन सरकार में कार्य

राज्य की गतिविधियों के एक विशेष उद्देश्य को हल करने के लिए एक अस्थायी अवधि के लिए दो या दो से अधिक अलग-अलग दलों के व्यक्तियों के एक साथ आने या एक गठबंधन में प्रवेश करने को गठबंधन कहते हैं।

एकल पार्टी सरकार में शक्तियां

जब चुनावों में एक दल पूरा बहुमत हासिल कर लेता है तो तब राष्ट्रपति उस दल के नेता को प्रधानमंत्री के रूप में सरकार बनाने और कार्य करने के लिए आमंत्रित करते हैं। संविधान में यह उल्लेख है कि इस तरह के मामलों में प्रधानमंत्री के पास बिना प्रतिबंधों के साथ सभी अधिकार होगें। इस प्रकार, इस तरह की सरकार अधिक स्थिर होती है।

अल्पसंख्यक सरकार में भूमिका

संसदीय प्रणाली में अल्पमत सरकार का गठन तब होता है जब एक राजनीतिक पार्टी या पार्टियों के गठबंधन के पास संसद में कुल सीटों का बहुमत नहीं होता है, लेकिन एक त्रिशंकु लोकसभा चुनाव परिणामों को तोड़ने के लिए अन्य दलों के बाहरी समर्थन द्वारा एक सरकार शपथ लेती है। ऐसी परिस्थिति में अन्य दलों के समर्थन के से ही कानून पारित किया जा सकता है। यह सरकार बहुमत वाली सरकार की अपेक्षा में कम स्थिर होती है। राजनीतिक इतिहास में इसका एक बेहतरीन उदाहरण नरसिंहा राव की सरकार रही है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी नहीं है कि सबसे बडी पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री होगा बल्कि वह सभी सदस्यों द्वारा तय किया गया कोई भी व्यक्ति हो सकता है। ऐसी स्थिति में सरकार कानून पारित कराने के लिए अन्य दलों पर निर्भर रहती है। गठबंधन और अल्पमत सरकार के बीच प्रमुख अंतर यह है कि गठबंधन सरकार में अल्पमत सरकार में विपक्षी दल एक समझौते का निर्माण कर सकते हैं जिसके द्वारा उन्हें सरकार पर नियंत्रण करने की अनुमति प्राप्त हो जाती है।

भारत के प्रधानमंत्रियों की सूची (अभी तक)

क्र.सं.

नाम

कार्यकाल अवधि

1.

जवाहरलाल नेहरू

1947- 1964

2.

गुलजारी लाल नंदा

1964- 1964

3.

लाल बहादुर शास्त्री

1964- 1966

4.

गुलजारी लाल नंदा

1966- 1966

5.

इंदिरा गांधी

1966- 1977

6.

मोरारजी देसाई

1977- 1979

7.

चरण सिंह

1979- 1980

8.

इंदिरा गांधी

1980- 1984

9.

राजीव गांधी

1984- 1989

10.

विश्वनाथ प्रताप सिंह

1989- 1990

11.

चंद्रशेखर

1990- 1991

12.

पी वी नरसिंह राव

1991- 1996

13.

अटल बिहारी वाजपेयी

1996- 1996 (16 दिन)

14.

एच डी देवगौड़ा

1996- 1997

15.

आई के. गुजराल

1997- 1998

16.

अटल बिहारी वाजपेयी

1998- 1999

17.

अटल बिहारी वाजपेयी

1999- 2004

18.

डॉ मनमोहन सिंह

2004- 2009

19.

डॉ मनमोहन सिंह

2009- 2014

20.

नरेंद्र मोदी

2014  से अभी तक

भारत का प्रधानमंत्री कार्यालय

प्रधानमंत्री कार्यालय की महत्वता और इसकी जिम्मेदारियों की वजह से चर्चित है। इसलिए बड़ी जिम्मेदारी के निष्पादन के लिए उसे प्रधानमंत्री के कार्यालय द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इसे सचिवीय सहायता प्रदान करने के अनुच्छेद 77 (3) के प्रावधान के तहत एक निर्मित प्रशासनिक एजेंसी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसकी शुरूआत 1947 में प्रधानमंत्री पद के सचिव के रूप में हुयी थी तत्पश्चात् 1977 में पुर्न: नामित कर इसका नाम प्रधानमंत्री कार्यालय रखा गया। व्य़ापार आवंटन नियम 1961 के तहत इसे विभाग का दर्जा प्राप्त है। यह स्टाफ एजेंसी मुख्यत: भारत सरकार के शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है। लेकिन फिर भी इसके महत्व अतिरिक्त संवैधानिक निकाय के रूप में भी है।

संरचना –

·         राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष होता है

·         प्रशासकीय रूप से प्रधान सचिव इसका अध्यक्षता होता है

·         एक या दो अतिरिक्त सचिव होते हैं

·         5 संयुक्त सचिव होते हैं

·         कई निदेशक, उप सचिव और सचिवों के नीचे वाले अधिकारी होते हैं।

(कार्मिक जो आम तौर पर सिविल सेवाओं में होते हैं उन्हें अनिश्चत काल के नियुक्त किया जाता है)

भूमिकाएं और कार्य

व्यापार नियम आवंटन 1961 के अनुसार, पीएमओ के 5 बुनियादी कार्य हैं-

1.    प्रधानमंत्री को सचिवीय सहायता प्रदान करना और एक थिंक टैंक के रूप में कार्य करना।

2.    वे सभी मामलों जिन पर प्रधानमंत्री रुचि रखते हैं, के लिए केंद्रीय मंत्रियों और राज्य सरकारों के साथ उसके संबंधों सहित मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में प्रधानमंत्री को समग्र जिम्मेदारियों के निष्पादन में मदद करना।

3.    योजना आयोग के अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री को उसकी जिम्मेदारी के निर्वहन में मदद करना।

4.    प्रधानमंत्री के जन सम्पर्क से संबंधित पक्ष जो बौद्धिक मंचों और नागरिक समाज से संबंधित होते हैं, उनमें मदद करना। इससे यह दोषपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ जनता से प्राप्त शिकायतों पर विचार करने के लिए यह जनसंपर्क कार्यालय के रूप में कार्य करता है।

5.    वर्णित नियमों के तहत आदेश हेतु प्रस्तुत मामलों के परीक्षण में प्रधानमंत्री को सहायता प्रदान करना जिससे प्रशासनिक संदेह से संबंधित मामलों पर सदन निर्णय ले सकता है।

विभिन्न प्रधान मंत्रियों की विकासवादी प्रवृत्ति

भारत में प्रशासन के केंद्रीकरण की धुरी पीएमओ के हाथों में में होती है जो प्रधानमंत्री के स्वभाव से प्रभावित रहती है और वह अपने सचिव की स्थिति को प्रभावित करता है या करती है।

राज्यपाल

अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य का राज्यपाल होना चाहिए / राज्य के कार्यकारी के तहत राज्यपाल, मंत्रियों की परिषद और राज्य के महाधिवक्ता होते हैं। राज्यपाल भी राज्य का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है जो अपने कार्य संबंधित राज्य के मंत्रियों की परिषद की सलाह के अनुसार करता है| इस के अलावा, राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर दोहरी भूमिका निभाता है| इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के आदेश पर पांच वर्षों के लिए की जाती है परन्तु वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त ही पाने पद पर रह सकता है|

राज्यपाल की नियुक्ति

राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिए योग्यता (अनुच्छेद 157) –

संविधान ने निम्न योग्यताएँ राज्यपाल को नियुक्त किए जाने के लिए रखी हैं :

• वह भारत का नागरिक हो

• उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो|

• वह राज्य के बाहर का व्यक्ति होना चाहिए ताकि वह स्थानीय राजनीति में लिप्त ना हो|

• एक ही व्यक्ति को 2 या 2 से ज्यादा राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, तो उसे दोनों राज्यों की तनख्वाह दी जाती है

• राज्यपाल की परिलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जा सकते।

राज्यपाल के अधिकार

राज्य के राज्यपाल के पास कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक अधिकार होंगे|  लेकिन उसके पास भारत के राष्ट्रपति की तरह कूटनीतिक, सैन्य या आपातकालीन अधिकार नहीं होंगे|
राज्यपाल की अधिकार और कार्य निम्नलिखित शीर्षों के अंतर्गत वर्गीकृत किये  जा सकते  है:

1. कार्यकारी अधिकार

2. विधायी अधिकार

3. वित्तीय अधिकार

4. न्यायिक अधिकार

कार्यकारी अधिकार

जैसा की ऊपर बताया गया है कि कार्यकारी अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जिनका प्रयोग राज्यपाल के नाम पर मंत्रियों की परिषद द्वारा किया जाता है| इसलिए राज्यपाल केवल नाममात्र का प्रमुख और मंत्रियों की परिषद वास्तविक कार्यकारी होती हैं। निम्नलिखित पद राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाते है और अपने कार्यकाल के दौरान अपने पद पर बने रहते हैं: राज्य का मुख्य मंत्री, मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्य के अन्य मंत्री , महाधिवक्ता। वह राष्ट्रपति से एक राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की सिफारिश भी कर सकता है । एक राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि के दौरान, राज्यपाल को राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में व्यापक कार्यकारी अधिकार प्राप्त होते है।

विधायी अधिकार :

राज्यपाल के यह अधिकार 2 उपसमूहों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं : बिल के संदर्भ में और विधान सभा के संदर्भ में|

बिल के संदर्भ में

• धन विधेयक के अलावा अन्य विधेयक को उसकी मंजूरी के लिए राज्यपाल के सामने पेश किया जाता है तो वह, बिल पर सहमति दे सकता है, बिल को अपने पास रख सकता है, बिल को सदनों में पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है परंतु यदि विधान सभा के द्वारा संशोधित या बिना संशोधन के फिर से बिल पारित कर दिया जाये, तो उसे अपनी सहमति देनी पड़ती है या राष्ट्रपति के विचार के लिए बिल को आरक्षित कर लेता है|
हालांकि, राज्यपाल पुनर्विचार के लिए धन विधेयक बिल वापस नहीं भेज सकता|यह इसलिए है क्योंकि आमतौर पर   यह विधेयक केवल राज्यपाल की पूर्व सहमति के साथ ही पेश किया जाता हैं|यदि विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित किया जाता है तो राष्ट्रपति ये जान सकता है की राज्यपाल अपनी सहमति दे रहा है या अपनी सहमति पर रोक लगा रखी है|

विधान सभा के संदर्भ में

राज्यपाल के पास राज्य विधानसभा को बुलाने व स्थगित करने का अधिकार है और यह विधान सभा को भंग भी  कर सकता है जब वह अपना बहुमत खो देती है (अनुच्छेद176 )|

वित्तीय अधिकार

• वह वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य का बजट) विधानसभा के समक्ष रखता है|

• धन विधेयक केवल राज्य विधानसभा में इसकी पूर्व अनुशंसा से  ही पेश किया जा सकता है

• अनुदान के लिए कोई भी मांग नहीं की जा सकती (जब तक उसकी अनुशंसा न हो)|

• अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए आकस्मिकता निधि से पैसा राज्यपाल की अनुशंसा के बाद ही निकाला जा सकता है|

• वह नगरपालिका और पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने के लिए हर 5 साल में वित्त आयोग का गठन करता है।

न्यायिक अधिकार-

राष्ट्रपति संबन्धित राज्य के राज्यपाल से सलाह करता है जब भी उसे राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करना हो|

माफी के अधिकार –

• माफ़ी – अपराधी को पूरी तरह दोषमुक्त करना

• फांसी स्थगित करना – सजा के क्रियान्वयन पर रहना

• राहत देना – कुछ विशेष परिस्थितियों में कम सजा की राहत प्रदान करना

• छूट देना –  सजा के चरित्र को बदले बिना सज़ा में छूट देना

• प्रारूप बदल देना – सज़ा के एक रूप को दूसरे से बदल देना|

विवेकाधीन अधिकार –

अध्यादेश लेने का अधिकार

राज्यपाल का निष्कासन

केंद्र सरकार को राष्ट्रपति की सहमती के आधार पर किसी भी राज्य के राज्यपाल को किसी भी समय हटाने का अधिकार है, यहाँ तक की उसे हटाये जाने के कारण बताए बिना|

• हालांकि इन अधिकारों का मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता। इनका प्रयोग असामान्य और असाधारण परिस्थितियों में  वैध और मजबूरी के कारण किया जा सकता है|

• एक मात्र कारण कि राज्यपाल के विचार व नीतियाँ राज्य सरकार से भिन्न है या और केंद्र सरकार ने उसमे अपना विश्वास खो दिया

है, राज्यपाल के निष्कासन का कारण नहीं बन सकता|

• केंद्रीय सरकार में परिवर्तन उसके निष्कासन का कारण नहीं बन सकते

• एक राज्यपाल को हटाने के फैसले को कानून के किसी भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है।अदालत केंद्र सरकार से वह साक्ष्य प्रस्तुत करने को कह सकती है जिसे द्वारा निर्णय लिया गया बाध्यकारी कारणों को सिद्ध करने के लिए|

मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री वास्तविक कार्यकारी होता है, राज्यपाल के अधीनस्थ अधिकारियों के बीच में वह सरकार का एक मुखिया होता है। उसकी स्थित/पद एक राज्य में वही होता है जो देश में प्रधानमंत्री का होता है। हमारे संविधान में एक मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त होने वाली विशेषताओं का स्पष्ट रूप से वर्णन नहीं किया गया है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 167 के तहत राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मंत्रियों की राज्य परिषद के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।

मुख्यमंत्री वास्तविक कार्यकारी होता है, राज्यपाल के अधीनस्थ अधिकारियों के बीच में वह सरकार का एक मुखिया होता है। उसकी स्थित या पद एक राज्य में वहीं होता है जो देश में प्रधानमंत्री का होता है।

नियुक्ति

हमारे संविधान में एक मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त होने वाली विशेषताओं का स्पष्ट रूप से वर्णन नहीं किया गया है।

शक्तियां और कार्य

मुख्यमंत्री की शक्तियों और कार्यों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:

• मंत्रियों परिषद के गठन का अधिकार –

मंत्रियों की राज्य परिषद के लिए मुख्यमंत्री के पास निम्नलिखित शक्तियां होती हैं-

1. वह (मुख्यमंत्री) एक मंत्री के रूप में किसी भी व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए राज्यपाल को सलाह दे सकता है। केवल मुख्यमंत्री की सलाह के अनुसार ही राज्यपाल मंत्रियों की नियुक्ति करते हैं।

2. वह आवश्यकता के अनुसार कभी भी मंत्रियों और विभागों के बीच आबंटन और फेरबदल कर सकता है।

3. राय/विचारों के अंतर के मामले में वह मंत्री को इस्तीफा देने के लिए कह सकता है, अगर वह (मंत्री) इस्तीफा नहीं देता है तो मुख्यमंत्री उसे बर्खास्त करने के लिए राज्यपाल को सलाह दे सकते हैं।

4. वह सभी मंत्रियों का निर्देशन, मार्गदर्शन देने के साथ- साथ सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है।

5. अपने अनुसार अपने मंत्री परिषद की नियुक्ति के साथ से ही वह उसके इस्तीफा देने या मौत की स्थिति में ही पूरी मंत्रिपरिषद को भंग किया जा सकता है।

राज्यपाल से संबंध –

हमारे संविधान के अनुच्छेद 167 के तहत राज्यों के मुख्यमंत्री राज्यपाल और मंत्रियों की राज्य परिषद के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। राज्यपाल से संबंधित कार्य निम्न प्रकार हैं:

1) मुख्यमंत्री राज्यपाल से राज्य के प्रशासन से संबंधित मंत्रियों की परिषद के सभी निर्णयों पर संवाद करते हैं।

2) जब कभी भी राज्यपाल प्रशासन के बारे में लिए गये निर्णयों से संबंधित कोई भी जानकारी मांगते हैं तो तब मुख्यमंत्री को उस जानकारी को राज्यापल को प्रदान करना या करवाना होता है।

3) जब एक निर्णय कैबिनेट के विचार के बिना लिया गया है तो तब राज्यपाल मंत्रियों की परिषद के विचार के लिए पूछ सकते हैं।

4) मुख्यमंत्री महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में जैसे- अटॉर्नी जनरल, राज्य लोक सेवा आयोग (अध्यक्ष और सदस्य), राज्य निर्वाचन आयोग आदि के बारे में राज्यपाल के साथ सलाह मशविरा करते हैं।

सरकार की एक मंत्रिमंडल के रूप में अंतत: मुख्यमंत्री ही मतदाताओं के लिए जिम्मेदार होता है। हालांकि वह राज्य का मुखिया होता है लेकिन उसे राज्यपाल को प्रोत्साहित करने और चेतावनी देने के लिए मदद करने हेतु गवर्नर के साथ ” सही परामर्श किया जाने वाले नियम” (सरकारिया आयोग की सिफारिश के अनुसार) का पालन करना पड़ता है।

• राज्य विधायिका से संबंध-

1) उसके द्वारा घोषित की गयी सभी नीतियों को सदन के पटल पर रखना होता है।

2) वह राज्यपाल को विधान सभा भंग करने की सिफारिश करता है।

3) वह समय- समय पर राज्य विधान सभा के सत्र के आयोजन और स्थगन के बारे में राज्यपाल को सलाह देता है।

• अन्य कार्य

1) जमीनी स्तर पर उसके पास नियमित रूप से लोगों के साथ संपर्क में रहने का अधिकार है और लोगों की समस्याओं के बारे में जानकारी लेना है जिससे कि वे मुद्दे विधानसभा के पटल पर रखे जा सके और उनके बारे में नीतियां बन सकें।

2) वह राज्य योजना आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है।

3) वह एक वर्ष की अवधि के लिए रोटेशन (परिक्रमण) संबंधित क्षेत्रीय परिषद का उपाध्यक्ष होता है।

4) आपात स्थिति में वह राजनीतिक स्तर पर प्रमुख रूप से एक संकट प्रबंधक के रूप में कार्य करता है।

भारत में पंचायती राज व्यवस्था

भारत में पंचायती राज व्यवस्था

पंचायत भारतीय समाज की बुनियादी व्यवस्थाओं में से एक रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं, महात्मा गांधी ने भी पंचायतों और ग्राम गणराज्यों की वकालत की थी। स्वतंत्रता के बाद से, समय– समय पर भारत में पंचायतों के कई प्रावधान किए गए और 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ इसको अंतिम रूप प्राप्त हुआ।

अधिनियम का उद्देश्य पंचायती राज की तीन– स्तरीय व्यवस्था प्रदान करना है, इसमें शामिल हैं–

क) ग्राम– स्तरीय पंचायत

ख) प्रखंड (ब्लॉक)– स्तरीय पंचायत

ग) जिला– स्तरीय पंचायत

73वें संशोधन अधिनियम की विशेषताएं

• ग्राम सभा गांव के स्तर पर उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है और वैसे काम कर सकती है जैसा कि राज्य विधान मंडल को कानून दिया जा सकता है।

• प्रावधानों के अनुरुप ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर पंचायतों का गठन प्रत्येक राज्य में किया जाएगा।

• एक राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का गठन बीस लाख से अधिक की आबादी वाले स्थान पर नहीं किया जा सकता।

• पंचायत की सभी सीटों को पंचायत क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों से भरा जाएगा, इसके लिए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी और आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, साध्य हो, और सभी पंचायत क्षेत्र में समान हो।

• राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, पंचायतों में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर या जिन राज्यों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत नहीं हैं वहां, जिला स्तर के पंचायतों में, पंचायतों के अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण

अनुच्छेद 243 डी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों को आरक्षित किए जाने की सुविधा देता है। प्रत्येक पंचायत में, सीटों का आरक्षण वहां की आबादी के अनुपात में होगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कुल आरक्षित सीटों के एक– तिहाई से कम नहीं होगी।

महिलाओं के लिए आरक्षण– अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक –तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं होनी चाहिए। इसे प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरा जाएगा और महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।

अध्यक्षों के कार्यलयों में आरक्षण– गांव या किसी भी अन्य स्तर पर पंचायचों में अध्यक्षों के कार्यालयों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण राज्य विधान–मंडल में, कानून के अनुसार ही होगा।

सदस्यों की अयोग्यता

किसी व्यक्ति को पंचायत की सदस्यता के अयोग्य करार दिया जाएगा, अगर उसे संबंधित राज्य का विधानमंडल अयोग्य कर देता है या चुनावी उद्देश्यों के लिए कुछ समय के लिए कानून अयोग्य घोषित कर देता है; और अगर उसे इस प्रकार राज्य के विधानमंडल द्वारा कानून बनाकर अयोग्य घोषित किया गया हो तो।

पंचायत की शक्तियां, अधिकार और जिम्मेदारियां

राज्य विधानमंडलों के पास विधायी शक्तियां हैं जिनका उपयोग कर वे पंचायतों को स्व– शासन की संस्थाओं के तौर पर काम करने के लिए सक्षम बनाने हेतु उन्हें शक्तियां और अधिकार प्रदान कर सकते हैं। उन्हें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाने और उनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

कर लगाने और वित्तीय संसाधनों का अधिकार

एक राज्य, कानून द्वारा, पंचायत को कर लगाने और उचित करों, शुल्कों, टोल, फीस आदि को जमा करने का अधिकार प्रदान कर सकता है। यह राज्य सरकार द्वारा एकत्र किए गए विभिन्न शुल्कों, करों आदि को पंचायत को आवंटित भी कर सकता है। राज्य की संचित निधि से पंचायतों को अनुदान सहायता दी जा सकती है।

पंचायत वित्त आयोग

संविधान के लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही (73वां संशोधन अधिनियम, 1992), पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा और उस पर राज्यपाल को सिफारिशें भेजने के लिए, एक वित्त आयोग का गठन किया गया था।

भारत में शहरी स्थानीय निकाय

समकालीन समय में, जैसे की शहरीकरण हुआ है और वर्तमान में, इसका तेजी से विकास हो रहा है, शहरी शासन की आवश्यकता अनिवार्य है जो ब्रिटिश काल से धीरे– धीरे विकसित हो रहा है और स्वतंत्रता के बाद इसने आधुनिक आकार ले लिया है। 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम के साथ, शहरी स्थानीय प्रशासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई।

74 वें संशोधन अधिनियम की मुख्य विशेषताएं

1. प्रत्येक राज्य में इनका गठन किया जाना चाहिए– क) नगर पंचायत, ख) छोटे शहरी क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद, ग) बड़े शहरी क्षेत्र के लिए नगरनिगम।

2. नगरपालिका की सभी सीटों को वार्ड के रूप में जाने जाने वाले नगरपालिका प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन में चुने गए व्यक्तियों से भरा जाएगा।

3. राज्य का विधान– मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिका प्रशासन में विशेष जानकारी या अनुभव वाले व्यक्तियों को; लोकसभा के सदस्यों और राज्य के विधान सभा के सदस्यों, राज्य के  परिषद और विधानपरिषद के सदस्यों को नगरपालिका प्रतिनिधित्व प्रदान करता है; समितियों के अध्यक्ष

4. वार्ड समिति का गठन

5. प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों औऱ अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होंगी।

6. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों की एक– तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं की जाएंगी।

7. राज्य, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को स्व– शासन वाले संस्थानों के तौर पर काम करने में सक्षम बनने हेतु अनिवार्य शक्तियां और अधिकार दे सकता है।

8. राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को कर लगाने और ऐसे करों, शुल्कों, टोल और फीस को उचित तरीके से एकत्र करने को प्राधिकृत कर सकता है।

9. प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर जिला नियोजन समिति का गठन किया जाएगा ताकि पंचायतों और जिलों की नजरपालिकाओं द्वारा तैयार योजनाओं को लागू किया जा सके और समग्र रूप से जिले के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार कर सके।

10. राज्य विधान– मंडल, विधि द्वारा महानगर योजना समितियों के गठन के संबंध में प्रावधान कर सकता है।

शहरी स्थानीय निकायों के प्रकार

1. नगर निगम

2. नगरपालिका

3. अधिसूचित क्षेत्र समिति

4. शहर क्षेत्र समिति (टाउन एरिया कमेटी)

5. छावनी बोर्ड

6. टाउशिप

7. पोर्ट ट्रस्ट

8. विशेष प्रयोजन एजेंसी

मंत्रिमंडलीय समितियां

मंत्रिमंडल की स्थायी समितियों जिनका पुनर्गठन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है । इन समितियों में, मंत्रिमंडल की समिति (एसीसी, आवास पर मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीए), आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए), संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति, राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीपीए), और सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) इत्यादि आते हैं। इन समितियों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। गृह मंत्री और मंत्री के प्रभारी संबंधित मंत्रालय इस समिति के सदस्य होते हैं।विभिन्न मंत्रिमंडल समितियों की संरचना और कार्य निम्नवत् हैं:

1. मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति

समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। गृह मंत्री और मंत्री के प्रभारी संबंधित मंत्रालय इस समिति के सदस्य होते हैं। समिति के महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं:

(i) कैबिनेट सचिवालय, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों के संबंध में सभी उच्च स्तर की नियुक्तियों पर निर्णय लेना।

(ii) विभाग या संबंधित मंत्रालय और संघ लोक सेवा आयोग के बीच नियुक्तियों से संबंधित असहमति के सभी मामलों के बारे में फैसला करना।

(iii) केन्द्र सरकार के संयुक्त सचिव या उसके समकक्ष और उनके बराबार भुगतान पाने वाले अधिकारियों के अभ्यावेदन, अपील और स्मारकों के बारे में विचार करना।

2. आवास पर मंत्रिमंडलीय समिति

समिति का गठन विभिन्न मंत्रालयों से कैबिनेट मंत्रियों द्वारा मिलकर होता है और उनमें से एक इसका प्रमुख होता है। समिति के महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं:

(i) संसद के सदस्यों को आवंटित सरकारी आवासों के बारे में निर्देशों या नियमों और नियमों और शर्तों को निर्धारित करने के विशेष आवंटन को नियंत्रित करना।

(ii) गैर-पात्र व्यक्तियों और संगठनों की विभिन्न श्रेणियों को सरकारी आवास आवंटित करने के बारे में फैसला करना तथा उनसे लिए जाने वाले किराए की दर का निर्णय लेना।

(iii)  दिल्ली से बाहर कार्यरत मौजूदा केन्द्र सरकार के कार्यालयों के स्थानांतरण और दिल्ली में नए कार्यालयों के स्थान के प्रस्तावों के बारे में विचार करना।

3. आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति

प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होते हैं। विभिन्न मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इसके महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं:

(i) आर्थिक क्षेत्र में सरकारी गतिविधियों का निर्देशन और समन्वय करना।

(ii) देश में आर्थिक रुझानों की समीक्षा करना और सुसंगत तथा एकीकृत नीतिगत ढांचा को विकसित करना।

(iii) छोटे और सीमांत किसानों से संबंधित तथा ग्रामीण विकास से संबंधित गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करना।

(iv) संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के लिए मंत्रालयों के प्रस्तावों को शामिल कर औद्योगिक लाइसेंसिंग मामलों का निपटारा करना।

(v) विनिवेश से संबंधित मुद्दों पर विचार करना।

समिति को आवंटित अन्य कार्य इस प्रकार हैं:

(i) विश्व व्यापार संगठन से संबंधित मुद्दों पर विचार और फैसला करना है।

(ii) भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण से संबंधित मुद्दों पर विचार करना।

(iii) सामान्य कीमतों की निगरानी करना, आवश्यक और कृषि वस्तुओं की उपलब्धता और निर्यात का आकलन करना तथा कुशल सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए कदम उठाना।

4. राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति

समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। विभिन्न मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इसके महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं:

(i) केन्द्र औऱ राज्य से संबंधित समस्याओं को निपटाने से संबंधित।

(ii) उन आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर विचार करना जिन पर एक व्यापक परिप्रेक्ष्य के साथ न्याय किया जाना है।

(iii) विदेशी मामलों से संबधित उन नीतिगत मामलों का निपटारा जो आंतरिक या बाहरी सुरक्षा से संबंधित नहीं है।

5. संसदीय मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति

यह समिति विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्रियों से मिलकर बनती है। केंद्रीय गृह मंत्री समिति के प्रमुख होते हैं। समिति के कार्य इस प्रकार हैं:

(i) संसद में सरकारी कार्य की प्रगति को देखना और इस तरह के कार्य के सुचारू और कुशल संचालन सुरक्षित करने के लिए आवश्यक निर्देश देना।

(ii) गैर सरकारी विधेयक और संसद के समक्ष पेश किये जाने वाले प्रस्तावों पर सरकार के रवैये की जांच और विचार करना।

(iii) अखिल भारतीय नजरिये से राज्य विधानमंडलों द्वारा किए गए कानूनों की समीक्षा करना।

(iv) संसद के सदनों को बुलाने या बंद करने के प्रस्तावों पर विचार करना।

6. सुरक्षा पर मंत्रिमंडलीय समिति

प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होते है। वित्त, रक्षा, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होते हैं। समिति के महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं:

(i) सुरक्षा से संबंधित सभी मुद्दों पर कार्यवाही करना

(ii) कानून और व्यवस्था, तथा आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों मुद्दों पर कार्यवाही करना

(iii) सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विदेश मामलों के विषय में नीतिगत मामलों पर कार्यवाही करना।

(iv) राष्ट्रीय सुरक्षा पर टकराव के आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों की समीक्षा करना।

(v) राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मानवशक्ति की आवश्यकताओं की समीक्षा करना।

(vi) परमाणु ऊर्जा से संबंधित सभी मामलों पर विचार करना।

7. अवसंरचना पर मंत्रिमंडलीय समिति

समिति के प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं और विभिन्न कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होते हैं। समिति के कार्य इस प्रकार हैं:

(i) तीन सौ करोड़ रुपए से अधिक की लागत के सभी बुनियादी सुविधाओं से संबंधित प्रस्तावों के संबंध में निर्णय लेना।

(ii) विशिष्ट परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश की सुविधा देने पर विचार करना और मानदंडों के बारे में फैसला करना।

(iii) ढांचागत परियोजनाओं के प्रर्दशन और प्रगति की समीक्षा के लिए वार्षिक मापदंडों और लक्ष्यों का निर्धारण करना।

(iv) विभिन्न कारणों की वजह से परियोजना की अनुमानित लागत में वृद्धि के मामलों पर विचार कर संशोधित लागत का अनुमान तय करना।

मंत्रिमंडलीय समितियों की विशेषताएं

1.    मंत्रिमंडलीय समितियां एक अतिरिक्त संवैधानिक संस्थाए होती हैं जिसका अर्थ यह हुआ कि उनका संविधान में उल्लेख नहीं किया गया है।

2.    प्रधानमंत्री कैबिनेट के चयनित सदस्यों के साथ विभिन्न मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन करते हैं और इन समितियों को विशिष्ट कार्यों प्रदान किये जाते हैं। प्रधानमंत्री विभिन्न समितियों की संख्या कम- ज्यादा भी कर सकते हैं और उन्हें सौंपे गये कार्यों को संशोधित भी कर सकते हैं।

3.    यदि प्रधानमंत्री ऐसी किसी भी समिति के सदस्य होते हैं तो वह उस समिति के मुखिया या अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।

4.    समिति में 3 से 8 सदस्य होते हैं। आमतौर पर, केवल कैबिनेट मंत्री ही इन समितियों के सदस्य होते हैं। लेकिन, कभी-कभी गैर कैबिनेट मंत्री भी इनका सदस्य हो सकता है या समिति का विशेष आमंत्रित सदस्य हो सकता है।

5.    वे मुद्दों को हल करने और मंत्रिमंडल के विचारार्थ लाए जाने वाले प्रस्ताव को तैयार करने और उन्हें सौंपने जैसे मामलों पर निर्णय लेते हैं। हालांकि मंत्रिमंडल को इस तरह के फैसलों की समीक्षा करने का अधिकार है।

संविधान की प्रस्तावना

संप्रभुता

प्रस्तावना यह दावा करती है कि भारत एक संप्रभु देश है। सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है कि भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। भारत की विधायिका को संविधान द्वारा तय की गयी कुछ सीमाओं के विषय में देश में कानून बनाने का अधिकार है।

समाजवादी

‘समाजवादी’ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। समाजवाद का अर्थ है समाजवादी की प्राप्ति लोकतांत्रिक तरीकों से होती है। भारत ने ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ को अपनाया है। लोकतांत्रिक समाजवाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखती है जहां निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र कंधे से कंधा मिलाकर सफर तय करते हैं। इसका लक्ष्य गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना है।

धर्मनिरपेक्ष

‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है कि भारत में सभी धमों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। संविधान के भाग III के अनुच्छेद 25 से 28 एक मौलिक अधिकार के रूप में धर्म की स्वतंत्रता को सुनिश्चत करता है।

लोकतांत्रिक

लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है कि संविधान की स्थापना एक सरकार के रूप में होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है। सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एक वोट एक मूल्य, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं हैं।

गणराज्य

एक गणतंत्र अथवा गणराज्य में, राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति को लोगों द्वारा परोक्ष रूप से चुना जाता है; जिसका अर्थ संसद औऱ राज्य विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से है। इसके अलावा, एक गणतंत्र में, राजनीतिक संप्रभुता एक राजा की बजाय लोगों के हाथों में निहित होती है।

न्याय

प्रस्तावना में न्याय शब्द को तीन अलग-अलग रूपों में समाविष्ट किया गया है- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, जिन्हें मौलिक और नीति निर्देशक सिद्धांतों के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से हासिल किया गया है।

प्रस्तावना में सामाजिक न्याय का अर्थ संविधान द्वारा बराबर सामाजिक स्थिति के आधार पर एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने से है। आर्थिक न्याय का अर्थ समाज के अलग-अलग सदस्यों के बीच संपति के समान वितरण से है जिससे संपति कुछ हाथों में ही केंद्रित नहीं हो सके। राजनीतिक न्याय का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी में बराबरी के अधिकार से है। भारतीय संविधान प्रत्येक वोट के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और समान मूल्य प्रदान करता है।

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का तात्पर्य एक व्यक्ति जो मजबूरी के अभाव या गतिविधियों के वर्चस्व के कारण तानाशाही गुलामी, चाकरी,कारावास, तानाशाही आदि से मुक्त या स्वतंत्र कराना है।

समानता

समानता का अभिप्राय समाज के किसी भी वर्ग के खिलाफ विशेषाधिकार या भेदभाव को समाप्त करने से है। संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। संविधान देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।

भाईचारा

भाईचारे का अर्थ बंधुत्व की भावना से है। संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है।

प्रस्तावना में संशोधन

1976 में, 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम (अभी तक केवल एक बार) द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या

संविधान में प्रस्तावना को तब जोड़ा गया था जब बाकी संविधान पहले ही लागू हो गया था। बेरूबरी यूनियन के मामले में (1960) सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। हालांकि, यह स्वीकार किया गया कि यदि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में एक शब्द अस्पष्ट है या उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं तो प्रस्तावना को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को पलट दिया और यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है। एक बार फिर,भारतीय जीवन बीमा निगम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है।

इस प्रकार स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रस्तावना खूबसूरत शब्दों की भूमिका से बनी हुई है। इसमें बुनियादी आदर्श, उद्देश्य और दार्शनिक भारत के संविधान की अवधारणा शामिल है। ये संवैधानिक प्रावधानों के लिए तर्कसंगतता अथवा निष्पक्षता प्रदान करते हैं।

संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों की सूची

भारत ने अपना संविधान 26 नवम्बर 1949 में अपनाया था । जब यह संविधान अपनाया गया था उस समय इसमें 395 अनुच्छेद 22 भाग और 8 अनुसूचियां थीं। वर्तमान में भारत के संविधान में 465 अनुच्छेद 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं । संविधान के कुल अनुच्छेदों में से 15 अर्थात 5,6,7,8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392  तथा 393 को 26 नवम्बर 1949 को ही लागू कर दिया था , जबकि  शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया  था ।

संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों की सूची इस प्रकार है:

अनुच्छेद 1- 4:  भारत के भूभाग, नए राज्यों के गठन, मौजूदा राज्यों के नामों के परिवर्तन से संबंधित है।

अनुच्छेद 5- 11:  नागरिकता के विभिन्न अधिकारों से संबंधित है।

अनुच्छेद 12- 35:  अस्पृश्यता और पदवी के भारतीय नागरिक उन्मूलन के मौलिक अधिकारों से संबंधित है।

अनुच्छेद 36- 51:  राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित है।

अनुच्छेद 51 A:  इस भाग को 42 वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया था जिसमें नागरिकों के मौलिक कर्तव्य शामिल हैं।

अनुच्छेद 52- 151:  केंद्र स्तर पर सरकार से संबंधित है।

अनुच्छेद 152- 237:  राज्य स्तर पर सरकार से संबंधित है।

अनुच्छेद 238: राज्यों से साथ संबंधित है।

अनुच्छेद 239-241:  संघ शासित प्रदेशों से संबंधित है।

अनुच्छेद 242- 243:  इसके दो हिस्से हैं: (i) इसमें एक नई सूची शामिल है जिसे 1992 में 73वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसमें पंचायती राज जिसने प्रशासनिक अधिकार प्रदान किये, से संबंधित संबंधित 29 विषयों को शामिल किया गया है। (ii)1992 में 74 वें संशोधन द्वारा एक नयी अनुसूची इसमें जोडी गयी। इसमें नगर पालिकाओं से संबंधित 18 विषय शामिल हैं जो प्रशासनिक अधिकार प्रदान करते हैं।

अनुच्छेद 244- 244 A: अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों से संबंधित है।

अनुच्छेद 245- 263: संघ और राज्यों के बीच संबंधों से संबंधित है।

अनुच्छेद 264- 300 A: संघ और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण और वित्त आयोग आदि की नियुक्ति से संबंधित है।

अनुच्छेद 301- 307: भारत के भूभाग के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम से संबंधित है।

अनुच्छेद 308- 323: संघ लोक सेवा आयोग और लोक सेवा आयोगों से संबंधित है।

अनुच्छेद 323 A, 323 B: 1976 में 42 वें संशोधन द्वारा इसे जोड़ा गया था। राज्यों या स्थानीय सरकार के कर्मचारियों के बारे में विवादों और शिकायतों को सुनने के लिए संसद द्वारा प्रशासनिक अधिकरण संघ की स्थापना से संबंधित है।

अनुच्छेद 324- 329: चुनावों से संबंधित है।

अनुच्छेद 330- 342: अनुसूचित जाति, जनजाति और आंगल- भारतीय प्रतिनिधियों के लिए विशेष प्रावधानों से संबंधित है।

अनुच्छेद 343- 351: संघ और राज्यों की आधिकारिक भाषा से संबंधित है।

अनुच्छेद 352- 360: आपातकालीन प्रावधानों, राष्ट्रपति शासन से संबंधित है।

अनुच्छेद 361- 367: आपराधिक कार्यवाही की छूट में राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके आधिकारिक दायित्वों से संबंधित है।

अनुच्छेद 368 : संविधान के संशोधन से संबंधित है।

अनुच्छेद 369- 392 : अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने से संबंधित है।

अनुच्छेद 371 A: नागालैंड राज्य के संदर्भ में विशेष प्रावधान प्रदान करता है।

अनुच्छेद 393- 395:  संविधान का संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और रद्द किये जाने से संबंधित है।

 

मौलिक अधिकार

संविधान के भाग III- भारत के नागरिकों को कुछ बुनियादों अधिकारों की गारंटी देता है मौलिक अधिकारों के रूप में जाना जाता है जो संविधान के प्रावधानों के अधीन और न्यायोचित हैं। मौलिक अधिकारों को छ भागों में विभाजित किया गया है जिनमें, संवैधानिक उपचारों का अधिकार, स्वतंत्रतता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल हैं।

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18):

अनुच्छेद 14 समानता के विचार का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि कोई भी राज्य भारत की सीमाओं के अंदर सभी व्यक्तियों को कानून का समान संरक्षण प्रदान करेगा। यह अनुच्छेद जाति, रंग या राष्ट्रीयता के भेदभाव किए बिना कानून के समक्ष समातनता की गारंटी देता है।

अनुच्छेद 15 केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है:

अनुच्छेद 15 इस बात का उल्लेख करता है कि केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, विकलांगता, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के भी आधार पर भेदभाव पर नहीं होगा । हालांकि, अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (g) में राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है। इस अपवाद का प्रावधान इसलिए किया गया है क्योंकि इसमें वर्णित वर्गो के लोग वंचित माने जाते हैं और उनको विशेष संरक्षण की आवश्यकता है।

सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16):

अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार या कार्यालय के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी के भी खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। यह राज्य या केन्द्र शासित प्रदेशों में रोजगार या नियुक्ति के लिए उस राज्य या केन्द्र शासित प्रदेशों के भीतर एक निवास के रूप में किसी भी आवश्यकता के लिए संसद को एक कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों का

सार्वजनिक सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान बनाने के लिए यह राज्य को विशेष अधिकार प्रदान करता है।

अस्पृश्यता (अनुच्छेद 17) का उन्मूलन:

अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है और इससे उत्पन्न होने वाली किसी भी प्रथा पर रोक लगाता है। अस्पृश्यता एक सामाजिक प्रथा या व्यवहार को दर्शाती है जिसमें कुछ दलित वर्गों को उनके जन्म से ही हेय की दृष्टि से देखा जाता है और उनके खिलाफ जिंदगी के स्तर पर भेदभाव किया जाता है।

अनुच्छेद 18 राज्य को किसी को भी कोई पदवी दे्ने से रोकता है तथा कोई भी भारतीय नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई पदवी स्वीकार नहीं कर सकता। हालांकि सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टता को इससे बाहर रखा गया है।

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19): अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों को नागरिक अधिकारों के रूप में छः प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है, इनमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघों की स्थापना के लिए एसेंबली की स्वतंत्रता आंदोलन की स्वतंत्रता, निवास और व्यवस्थित होने की स्वतंत्रता, पेशा, व्यवसाय, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता शामिल हैं ।

अपराध के लिए सजा के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20) :

कोई भी व्यक्ति जो एक अपराध करता है, उसको अपनी अत्यधिक सजा के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। यह अनुच्छेद अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए शामिल किया है। इसके अलावा इस अनुच्छेद को आपातकाल की स्तिथि में भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।

जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) का संरक्षण:

अनुच्छेद 21, जो विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार होने वाली कार्यवाही को छोड़ कर, जीवन या व्यक्तिगत संवतंत्रता में राज्य के अतिक्रमण से बचाता है। हालांकि, अनुच्छेद 21 में विधायी सूचियों को पढ़ने के साथ अनुच्छेद 246 के तहत राज्य की शक्तियों की एक सीमा तय की गयी है। इस प्रकार, अनुच्छेद 21 एक पूर्ण अधिकार के रूप में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता नहीं देता है लेकिन स्वयं के अधिकारों की गुंजाइश को सीमित करता है।

मनमानी गिरफ्तारी और निरोध (अनुच्छेद 22) के खिलाफ निगरानी:

सबसे पहले, अनुच्छेद 22 हर किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले उसकी गिरफ्तारी के कारण के बारे में सूचित करने की गारंटी देता है। दूसरी बात, उसको परामर्श करने का अधिकार है तांकि अपने पसंद के वकील द्वार स्वंय का बचाव किया जा सके। तीसरा, गिरफ्तार किये गये तथा हिरासत में लिये गये हर व्यक्ति को चौबीस घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और केवल तभी तक हिरासत में रखा जाएगा जब तक तक अदालत का आदेश होगा।

शोषण के खिलाफ अधिकार, (अनुच्छेद 23-24):

अनुच्छेद 23 मानव तस्करी के खिलाफ प्रतिबंध लगाता है जिसमें महिलाएं, बच्चे, भिखारी या अन्य मानव गरिमा के खिलाफ युद्ध या अतिक्रमण शामिल है। अनुच्छेद 24 में किसी भी खतरनाक रोजगार में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। यह  अधिकार मानव अधिकार अवधारणाओं और संयुक्त राष्ट्र के मानदंडों का पालन करता है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28):

अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों का प्रतीक है और भारतीय लोकतंत्र की धर्मनिरपेक्ष तरीके से सेवा करता है अर्थात् सभी धर्मों का बराबर सम्मान करता है। अनुच्छेद 25 विवेक और नि: शुल्क व्यवसाय, अभ्यास और धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता को सुनिश्चत करने में मदद करता है जो सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य, हर धार्मिक संप्रदाय या किसी भी वर्ग से संबंधित होता है। अनुच्छेद 27 किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिए या रखरखाव के धार्मिक खर्च के लिए करों का भुगतान नहीं करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद 28 राज्य के शिक्षण संस्थानों में धार्मिक दिशा- निर्देशों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाता है।

अल्पसंख्यकों के लिए विशेषाधिकार (सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार) (अनुच्छेद 29-30)

अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा प्रदान करता है। एक शैक्षिक संस्था द्वारा एक अल्पसंख्यक समुदाय अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति का संरक्षण कर सकता है। अनुच्छेद 30 सभी अल्पसंख्यंकों को धार्मिक और भाषाई आधार पर अपनी शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान करता है।

संविधान के 44वें संशोधन में संपति के अधिकार को समाप्त करने का उल्लेख किया गया है जो अब एक कानूनी अधिकार बन गया है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32-35):

संवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन या उल्लंघन के विरुद्ध सुरक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जाने की गारंटी देता है। एक मौलिक अधिकार के रूप में, अन्य मौलिक अधिकारों कयरे से बाहर जाकर कोई कर नहीं लगाया जा सकता। सरकार अनुमोदन के लिए बजट को संसद में पेश करती है। बजट के पारित होने का अर्थ है संसद ने सरकार की प्राप्तियों और खर्च को वैधता प्रदान कर दी। लोक लेखा समिति और प्राक्कलन समिति सरकार के खर्च पर नजर रखती है। ये समितियां खातों की जांच करती हैं और सार्वजनिक व्यय में अनियमितता, अवैध या अनुचित उपयोग के मामलों को उजागर करती है।

इस प्रकार, संसद सरकार पर बजट के साथ– साथ बजट– के बाद भी नियंत्रण रख रही है। अगर एक वित्त वर्ष में सरकार खर्च करने के लिए अनुमोदित बजट को खर्च करने में विफल रहती है तो बाकी बची धनराशि भारत की संचित निधि में वापस भेज दी जाती है। इसे ‘चूक का नियम’ कहते हैं। इसकी वजह से वित्त वर्ष के अंत तक व्यय में बढ़ोतरी हो जाती है।

न्यायिक शक्तियां और कार्य

नीचे संसद की न्यायिक शक्तियां और कार्य दिए जा रहे हैं–

 

(i) इसे राष्ट्रपति, उप–राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट औऱ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर महाभियोग लगाने की शक्ति प्राप्त है।

(ii) यह अपने या बाहरी सदस्यों को विशेषाधिकार की अवमानना या उल्लंघन के लिए दंडित भी कर सकता है।

निर्वाचन शक्तियां और कार्य

नीचे संसद की निर्वाचन शक्तियां और कार्य दिए जा रहे हैं–

(i) संसद के निर्वाचित सदस्य ( राज्य विधानसभाओं के साथ) राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेंगे।

(ii) संसद के सभी सदस्य उप– राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेंगें।

(iii) लोकसभा अपना स्पीकर और डिप्टी स्पीकर खुद चुनता है।

(iv) राज्य सभा अपने उपाध्यक्ष का चुनाव।

(v) विभिन्न संसदीय समितियों के सदस्यों को भी चुने गए हैं।

संघटक शक्तियां और कार्य

सिर्फ संसद के पास संविधान में संशोधन के लिए किसी प्रस्ताव को आरंभ करने का अधिकार है। संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। हालांकि, राज्य विधानमंडल संसद से राज्य में विधानपरिषद के गठन या उसे निरस्त करने के लिए अनुरोध प्रस्ताव पारित कर सकता है। प्रस्ताव के आधार पर संसद उस उद्देश्य के लिए संविधान में संशोधन हेतु अधिनियम बना सकती है। संविधान संशोधन के लिए तीन प्रकार के विधेयक होते हैं, जिसके लिए जरूरी है–

(i) साधारण बहुमतः ये विधेयकों साधरण बहुमत द्वारा पारित किए जाते हैं यानि अधिकांश सदस्य उपस्थित होते हैं और प्रत्येक सदन में मतदान करते हैं।

(ii) विशेष बहुमतः इन विधेयकों को सदन के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो– तिहाई सदस्यों औऱ प्रत्येक सदन में मतदान द्वारा पारित करने की जरुरत होती है।

(iii) विशेष बहुमत और सभी राज्य विधानसभाओं में से आधे की सहमतिः इस प्रकार के विधेयकों को प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत द्वारा पारित होने की जरूरत होती है। इसके अलावा, कम– से – कम राज्य विधानमंडलों के आधे विधानमंडलों को विधेयक पर अपनी सहमति देनी चाहिए।

*****************************************************************************

न क्षेत्र का मतदाता हो।

• अगर किसी व्यक्ति को दोषी करार देते हुए उस पर सिर्फ जुर्माना लगाया गया हो तो वह व्यक्ति दोषी करार दिए जाने की तारीख से 6 वर्षों की अवधि तक या सजा दिए जाने पर, सजा दिए जाने की तारीख से 6 वर्षों की अवधि तक और रिहा किए जाने की तरीख से और 6 वर्षों की अवधि तक वह अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

• अगर चुनाव आयोग इस बात से संतुष्ट है कि व्यक्ति चुनाव खर्च का लेखा– जोखा निर्धारित समय और अपेक्षित ढंग से करने में सफल रहा है।

• भ्रष्टाचार और देशद्रोह के आधार पर अयोग्य।

रिप्रेजेंटेशन ऑफ पिपुल्स एक्ट 1951 के तहत निम्नलिखित को भ्रष्ट आचरण के रूप में घोषित किया गया है:

• किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट देना या उसे वोट देने से रोकना।

• धर्म, वंश, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर विभिन्न नागरिक समूहों के बीच नफरत की भावना को बढ़ावा देना।

• किसी भी उम्मीदवार के व्यक्तिगत चरित्र या आचरण के बारे में गलत तथ्य या कथन का प्रकाशन

• बूथ पर कब्जा करना

• निर्दिष्ट के उल्लंघन हेतु किया गया खर्च

• सरकारी नौकरी वाले किसी भी व्यक्ति से सहायता प्राप्त करना

• मतदाताओं को किसी भी मतदान केंद्र पर मुफ्त में आने– जाने के लिए वाहन किराए पर लेना या खरीदना

राज्य सभा की विशेष शक्तियां

• राज्य सूची में सूचीबद्ध किसी भी विषय पर कानून बनाने के लिए संसद को अधिकृत कर सकता है (अनुच्छेद 249)

• संसद को केंद्र और राज्य दोनों ही के लिए नई अखिल भारतीय सेवाएं / नौकरियां बनाने को अधिकृ कर सकता है।

स्पीकर और अध्यक्ष के बीच अंतर

• स्पीकर सदन (लोकसभा) का सदस्य होता है लेकिन अध्यक्ष सदन (राज्यसभा) का सदस्य नहीं होता।

• जब स्पीकर को हटाए जाने का प्रस्ताव विचाराधीन होता है तब स्पीकर भी वहां उपस्थित हो सकते हैं और मतदान प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं ( प्रथम उदाहरण), लेकिन अध्यक्ष सिर्फ बोल सकते हैं, मतदान में

हिस्सा नहीं ले सकते।

• स्पीकर यह फैसला करता है कि विधेयक धन विधेयक है या नहीं लेकिन अध्यक्ष के पास ऐसा फैसला करने का कोई अधिकार नहीं होता।

• स्पीकर संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है जबकि अध्यक्ष नहीं।

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष एवं स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के वेतन और भत्ते– इन्हें कानून द्वारा संसद द्वारा निर्धारित वेतन और भत्तों का भुगतान किया जाएगा और जब तक कि इस बारे में प्रावधान न किया जाए, इनके वेतन और भत्ते हमारे संविधान की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट वेतन और भत्ते के समान होगी।

संसद की कार्यवाही

प्रत्येक सदन अपनी कार्यवाही का मालिक है और अपनी कार्यवाही और कामकाज के संचालन के लिए संविधान के प्रावधानों के अनुसार नियम बना सकता है। संसद में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर प्रक्रिया में कथित अनियमितता के आधार पर अदालत में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। संविधान में कार्यवाही और कामकाज के कुछ मूल नियम दिए गए हैं। संसदीय बैठक की शुरुआत का प्रथम घंटा प्रश्न काल होता है। इस दौरान सदस्य ऐसे सवाल पूछते हैं जिसका जवाब मंत्री देंगे। तदनुसार प्रश्नों को तारांकित किया जा सकता है जिसके लिए मंत्री मौखिक जवाब देंगे और अन्य सदस्य मंत्री द्वारा दिए गए जवाब के आधार पर पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं। जिन प्रश्नों के जवाब मंत्री आमतौर पर लिखित में देते हैं उन्हें अतारांकित रखा जा सकता है। दूसरे प्रकार का प्रश्न अल्प सूचना प्रश्न होता है जिसके लिए प्रश्न पूछने से पहले 10 दिनों का नोटिस दिया जाता है। माना जाता है कि मंत्री द्वारा ऐसे प्रश्नो का भी जवाब मौखिक होगा।

प्रश्नकाल के बाद शून्य काल आता है जो दिन के एजेंडे तक चलता है। संसद सदस्य इसका उपयोग बिना किसी पूर्व नोटिस के प्रश्न पूछने के लिए करते हैं। संविधान में हिन्दी और अंग्रेजी को संसद की भाषा घोषित किया है। हालांकि पीठासीन अधिकारी किसी भी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकते हैं। इसके अलावा प्रत्येक मंत्री और अटॉर्नी जरनल को किसी भी सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने का अधिकार है। इन्हें सदन में बोलने का भी अधिकार है लेकिन इनके पास जिस सदन से ये संबंधित होते हैं, उसके अलावा किसी अन्य सदन में मतदान करने का अधिकार नहीं होता।

सदन की कार्यवाही– समय– समय पर राष्ट्रपति प्रत्येक सदन को समन देते हैं। एक सत्र को आयोजित करने का अधिकतम अवधि 6 माह की होती है यानि सदन की बैठक एक वर्ष में कम– से– कम दो बार होनी चाहिए। आम तौर पर सत्रों को इस प्रकार तीन सत्रों में वर्गीकृत किया जाता है–

• बजट सत्रः फरवरी– मार्च

• मानसून सत्रः जुलाई– सितंबर

• शीतकालीन सत्रः नवंबर– दिसंबर

संसद की भूमिका

इसके अधिकारों और कार्यों को निम्नलिखित तरीके से वर्गीकृत किया जा सकता है

1. विधायी शक्तियां

2. कार्यकारी शक्तियां

3. वित्तीय शक्तियां

4. संघटक शक्तियां

5. न्यायिक शक्तियां

6. निर्वाचन शक्तियां

7. अन्य शक्तियां

 

1) विधायी शक्तियां– हमारे संविधान में सभी विषय राज्य, संघ और समवर्ती सूची में विभाजित हैं। समवर्ती सूची में संसदीय कानून राज्य विधायी कानून से ऊपर है। संविधान के पास निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्य विधानसभा के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है–

• जब राज्यसभा इस आशय का प्रस्ताव पारित करे

• जब राष्ट्रीय आपातकाल चल रहा हो

• जब दो या अधिक राज्य संसद को ऐसा करने का अनुरोध करें

• जब अंतरराष्ट्रीय समझौतों, संधियों और समझौतों को लागू करने के लिए जरूरी हो

• जब राष्ट्रपति शासन लगा हो।

2) कार्यकारी शक्तियां– सरकार के संसदीय स्वरुप के अनुसार संसद के अधिनियमों और नीतियों के लिए उसके कार्यकारी जिम्मेदार हैं। इसलिए संसद समितियों, प्रश्नकाल, शून्य काल आदि जैसे विभिन्न उपायों द्वारा नियंत्रण रखती है। मंत्री समग्र रूप से संसद के लिए जिम्मेदार होते हैं।

3) वित्तीय शक्तियां– इसमें बजट के लागू होने, वित्तीय समितियों ( बजटीय नियंत्रण के बाद) के माध्यम से वित्तीय खर्च के संबंध में सरकार के प्रदर्शन की छानबीन शामिल है।

4) संघटक शक्तियां– यानि संविधान में संशोधन करना, जरूरी कानून पारित करना।

5) न्यायिक शक्तियां– इसमें शामिल हैं

• संविधान के उल्लंघन के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग

• सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाना

• उपराष्ट्रपति को हटाना

• जब सदस्य को पता हो कि वह सदन में बैठने का पात्र नहीं है फिर भी वह सदन में उपस्थित हो, शपथ लेने से पहले ही सदस्य के तौर पर काम करने आदि जैसे विशेषाधिकार का उल्लंघन करने पर सदस्यों को सजा देना।

6) निर्वाचन शक्तियां– राष्ट्रपति और उप–राष्ट्रपति के चुनाव में इसकी भागीदारी है। लोकसभा के सदस्य स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव अपने सदस्यों में से करते हैं। इसी प्रकार राज्यसभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं।

7) अन्य शक्तियां–

• राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करना

• आपातकाल लगाना

• क्षेत्र को बढ़ाना या कम करना, नाम बदलना, राज्यों की सीमा में बदलाव।

• राज्य विधानमंडल को बनाना या निरस्त करना आदि। समय– समय पर कोई भी शक्ति दी जा सकती है।

संविधान का अनुच्छेद 245 ने घोषित किया है कि संसद भारत वर्ष के लिए या इसके किसी भी हिस्से के लिए कानून बना सकता है औऱ राज्य विधान मंडल पूरे राज्य या राज्य के किसी भी हिस्से के लिए कानून बना सकता है। संविधान की सातवीं अनुसूची संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में विषयों को डालकर केंद्र और राज्य के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा करती है। केंद्र सूची या समवर्ती सूची में शामिल किसी भी विषय पर केंद्र कानून बना सकता है। समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषय पर राज्य द्वारा बनाए गए कानून को संसद निरस्त कर सकती है। इन शक्तियों के अलावा, संसद को और भी शक्तियां प्रदान की गईं हैं। संविधान ने निम्नलिखित परिस्थितयों में राज्य के विषय पर कानून बनाने के लिए संसद को शक्तियां प्रदान की हैं–

(i) जब राज्य सभा कोई प्रस्ताव उपस्थित सदस्यों के दो– तिहाई समर्थन और वोट से पारित कर दे

(ii) जब आपातकाल चल रहा हो

(iii) जब दो या अधिक राज्य मिलकर संसद में अनुरोध करें

(iv) जब किसी अंतरराष्ट्रीय संधि, समझौते या सम्मेलन को लागू करने के लिए संसद के लिए जरूरी हो

(v) जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हो

कार्यकारी शक्तियां और कार्य

भारत में, राजनीतिक कार्यपालिका संसद का हिस्सा है। संसद प्रश्नकाल, शून्य काल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, आधे घंटे की चर्चा आदि जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से कार्यवाही पर नियंत्रण रखती है। संसदीय समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य निर्वाचित/ मनोनीत किए जाते हैं। इन समितियों के माध्यम से संसद सरकार पर नियंत्रण रखती है। संसद द्वारा गठित मंत्रालय आश्वासन समिति मंत्री द्वारा संसद में दिए गए आश्वासन को पूरा किया जाना सुनिश्चित करती है।

संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्रियों की परिषद लोकसभा में विश्वासमत प्राप्त रहने तक बनी रहेगी। मंत्री, संसद के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित कर लोकसभा मंत्री परिषद को हटा सकता है। इसके अलावा, लोकसभा निम्नलिखित तरीकों से सरकार में विश्वास की कमी व्यक्त कर सकती है–

(i) राष्ट्रपति के उद्घाटन भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित न कर

(ii) धन विधेयक खारिज कर

(iii) निंदा प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव पारित कर

(iv) कटौती प्रस्ताव पारित कर

(v) महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार को हरा कर

संसद की ये शक्तियां सरकार को संवेदनशील और जिम्मेदार बनाने में मदद करती हैं।

वित्तीय शक्तियां और कार्य

वित्तीय मामलों में संसद को सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है। कार्यकारी संसद के अनुमोदन के बिना एक पैसा खर्च नहीं कर सकते। कानून के प्रवर्तन के लिए गारंटी प्रदान करता है, संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को इन अधिकारों के रक्षक के रूप में नामित किया गया है। अनुच्छेद 33 सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के साथ सशस्त्र बलों या जबरन लगाये गये आरोपों के लिए एफआरएस के आवेदन को संशोधित करने के लिए संसद को अधिकार प्रदान करता है। दूसरी ओर, अनुच्छेद 35 में यह  निर्दिष्ट है कि कुछ विशेष एफआरएस को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाने की शक्ति राज्य विधानसभाओं के पास नहीं होगी यह अधिकार केवल संसद के पास होगा।

इसलिए, मौलिक अधिकार एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं क्योंकि पूर्ण, बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करने के लिए यह एक व्यक्ति के लिए सबसे जरूरी हैं। इसलिए, संविधान में मौलिक अधिकारों के शामिल किए जाने का उद्देश्य एक कानूनी सरकार की स्थापना करना था जिससे एक न्यायसंगत समाज का निर्माण, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो सके।

 

मौलिक कर्तव्य

42वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा हमारे वर्तमान संविधान के भाग 4 में मौलिक कर्तव्य शामिल किये थे। वर्तमान में अनुच्छेद 51 A के तहत हमारे संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं जो कानून द्वारा वैधानिक कर्तव्य हैं और प्रवर्तनीय भी हैं। मौलिक अधिकारों को स्थापित करने के पीछे का उद्देश्य नागरिकों द्वारा अपने मौलिक अधिकारों का आदान-प्रदान कर अपने कर्तव्यों के दायित्वों पर जोर देकर उनका आनंद उठाना था।

हमारे संविधान में निम्नलिखित कर्तव्य हैं:

A) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों एवं  संस्थाओं, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करे

संविधान का पालन करने और इसके आदर्शों एवं संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान के संदर्भ में- प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह आदर्शों का सम्मान करे जिसमें स्वतंत्रता, न्याय, समानता, भाईचारा और संस्थाएं अर्थात् संस्थान, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका शामिल है। इसलिए किसी भी अंसंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त हुए बिना संविधान की गरिमा बनाए रखना हम सब का कर्तव्य है। संविधान में यह भी उल्लेख किया गया है कि यदि कोई भी नागरिक को राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का अनादर करता है तो संविधान के प्रति वह दंड का भागीदार होगा। एक संप्रभु राष्ट्र के नागरिक के रूप संविधान का आदर करना सबका कर्तव्य है।

B) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों का सम्मान करे

भारत के नागरिक को उन महान आदर्शों का ध्यान रखते हुए पालन करना चाहिए जो स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की प्रेरणा का स्त्रोत बने। एक समाज का निर्माण और स्वतंत्रता, समानता, अहिंसा, भाईचारा और विश्व शांति के लिए एक संयुक्त राष्ट्र का निर्माण करना हमारे आदर्श है। यदि भारत के नागरिक इन आर्दशों के प्रति सचेत और प्रतिबद्ध हैं, तो अलगाववादी प्रवृत्तियां कहीं भी कहीं भी जन्म नहीं ले सकती है।

C) भारत की समप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और अक्षुण्ण बनाए रखे:

यह भारत के सभी नागरिकों के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दायित्वों में से एक है। भारत में जाति, धर्म, लिंग, भाषा के आधार पर लोगों की विशाल विविधता है। यदि देश की आजादी और एकता पर कोई खतरा उत्पन्न होता है तो तब संयुक्त राष्ट्र की कल्पना करना संभंव नहीं है। इसलिए संप्रभुता लोगों के पास हमेशा रहती हैं। इसे फिर से स्मरित किया जाता है जैसा कि प्रस्ताव में इसका उल्लेख पहले भी किया गया है और मौलिक अधिकारों की धारा 19 (2) के तहत भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उचित प्रतिबंधों की अनुमति प्रदान की गयी है।

D) देश की रक्षा करे तथा बुलाए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे

बाहरी दुश्मनों के खिलाफ खुद की रक्षा करना हमारा एक मौलिक कर्तव्य है। प्रौद्योगिकी और परमाणु शक्तियों में सुधार होने से युद्ध केवल भूमि पर ही नहीं लड़े जा रहें हैं इसलिए सभी नागरिक इसके लिए बाध्य हैं कि कोई भी संदिग्ध तत्व जो भारत में प्रवेश करते हैं, के प्रति जागरूक रहें और जरूरत पड़ने पर स्वयं का बचाव करने के लिए हथियार उठाने को भी तैयार रहें। थल सेना, नौसेना और वायु सेना के अलावा इसमें सभी नागरिकों को शामिल किया गया है।

E) धर्म, भाषा और प्रबंध या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे भारत के लोगों में समरसता और समान बंधुत्व की भावना का निर्माण करें, स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध प्रथाओं का त्याग करें

लोगों के बीच विभिन्न विविधताएं प्रदान की गयी हैं और एक ध्वज और भाईचारे की एक नागरिकता की भावना की उपस्थिति सभी नागरिकों में स्वाभाविक रूप से होनी चाहिए। यह उल्लेख भी किया गया है कि सभी नागरिकों को संकीर्ण सास्कृतिक मतभेदों से उपर उठकर सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है। हर नागरिक में पारिवारिक मूल्यों और शिक्षा के मामले में जिम्मेदार पितृत्व की भावना होनी चाहिए तथा बच्चे के शारीरिक नैतिक विकास को ठीक से पूरा किया जाना चाहिए।

भारतीय संसद

भारत संघ की सर्वोच्च विधायी अंग को संसद कहा जाता है। भारतीय संविधान हमें एक संसदीय लोकतंत्र प्रदान करता है, भारत की संसद देश के शासन में प्रमुख स्थान रखती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79– 122 में भारत के संसद की संरचना, शक्तियां और प्रक्रियाओं के बारे में उल्लेख किया गया है।

संरचना

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 79 कहता है कि संघ के लिए संसद होनी चाहिए जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन– राज्य सभा (राज्यों के परिषद– काउंसिल ऑफ स्टेट्स) और लोकसभा (लोगों का सदन– हाउस ऑफ द पीपुल) हों।

संविधान का अनुच्छेद 80 राज्य सभा की संरचना निर्दिष्ट करता है जिसमें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 सदस्य और राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 238 प्रतिनिधि होते हैं।

राज्यसभा में सीटों का आवंटन चौथी अनुसूची में निहित प्रावधानों के अनुसार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों द्वारा पूरा किया जाना है।

राज्यों से प्रतिनिधित्व– इनका चुनाव एकल हस्तांतरणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाएगा। इसलिए उपर दिए गए तथ्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक राज्य के सीटों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या के अनुसार बदलती रहती है। इसलिए बड़े राज्यों के सीटों की संख्या छोटे राज्यों की तुलना में अधिक होती है।

केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधिः परंपरा के अनुसार, प्रतिनिधियों का चयन परोक्ष रुप से निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है और चुनाव एकल हस्तांतरणीय मत के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार आयोजित किया जाता है। सभी केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ दिल्ली और पॉन्डिचेरी के ही प्रतिनिधि होते हैं क्योंकि बाकी सभी केंद्र शासित प्रदेशों की आबादी बहुत कम है।

मनोनीत सदस्य– वे व्यक्ति जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, उन्हें राज्यसभा में बिना निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल हुए, प्रवेश करने का अवसर प्रदान किया जाता है। हाल ही में यह बात सुर्खियों में रही जब सचिन तेंदुलकर को मनोनीत किया गया, क्योंकि इस धारा के अनुसार खिलाड़ियों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत कर राज्य सभा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है लेकिन बाद में इसे स्वीकार कर लिया गया था।

अनुच्छेद 81 लोकसभा की संरचना बताता है जिसमें राज्यों के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में हुए प्रत्यक्ष चुनाव से निर्वाचित 530 सदस्यों से अधिक नहीं हो सकते; 20 से अधिक लोग केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते; 2 एंग्लो– इंडियन।

राज्यों का प्रतिनिधित्व– इनका चुनाव जनता सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रयोग कर करती है। लोक सभा में प्रत्येक राज्य के लिए सीटों की संख्या निर्धारित होती है। सीटों की संख्या का निर्धारण सभी राज्यों के लिए राज्यों की संख्या और वहां की जनसंख्या के अनुपात के बराबर होती है। इसमें अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए जनसंख्या अनुपात के आधार पर सीटों के आकर्षण का भी प्रावधान है।

केंद्र शासित प्रदेशों से प्रतिनिधित्व– संसद द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार लोकसभा में केंद्र शासित प्रदेशों का प्रत्यक्ष निर्वाचन अधिनियम 1965 पारित किया गया था और इसलिए वे भी जनता द्वारा चुने जाते हैं।

मनोनीत सदस्य– अगर राष्ट्रपति को यह लगे कि एंग्लो– इंडियन समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है तो राष्ट्रपति के पास एंग्लो– इंडियन समुदाय के 2 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार होता है।

संसद की सदस्यता की योग्यता–

अनुच्छेद 84 के अनुसार, संसद के सदस्यों की योग्यता इस प्रकार है। इसमें कहा गया है कि एक व्यक्ति सांसद बनने की योग्यता तभी रखता है जब वह

• भारत का नागरिक हो।

• राज्यसभा के मामले में सदस्य की उम्र 30 वर्ष और लोकसभा के मामले में 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

• समय– समय पर संसद द्वार वर्णित इस प्रकार की अन्य योग्यता रखना। तदनुसार संसद ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ पिपुल्स एक्ट, 1951 पारित किया। इस अधिनियम के अनुसार अतिरिक्त योग्यता इस प्रकार हैं।

• एक व्यक्ति जब तक कि भारत में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता न तो तब तक वह लोकसभा में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधि के तौर पर चुने जाने योग्य नहीं होगा।

• एक व्यक्ति लोकसभा के लिए चुने जाने के योग्य नहीं होगा जब तक कि वह किसी भी राज्य में अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीट पर, किसी भी राज्य या उस राज्य के लिए क्रमशः अनुसूचित जाति/ जनजाति का सदस्य हो और संसदयी निर्वाच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *